सर्व प्रथम 610 ई़. से रमजान का रोजा मुसलमानों पर फर्ज हुआ, इस माह की 27वीं रात यानी शब-ए-कद्र की रात को कुरान शरीफ धरती पर उतारी गई, इसी रात में ही सैयदना हजरते आदम के जन्म संबंधी बुनियाद भी रखी गई
जमुई : रमजान का महीना उम्मीद है कि रविवार या सोमवार से शुरू हो जाएगा। इस महीना के आते ही मुसलमानों के घरों में खुशियां छा जाती है। रमजान के महीने में अल्लाह के रसूल के फरमान के मुताबिक हर फर्ज इबादतों का सबाब सत्तर गुना अधिक बढ़ा दिया जाता है। साथ ही जन्नत के दरवाजे खोल दिये जाते है और जहन्नुम के दरवाजे बंद कर दिये जाते हैं। इसलिए इस माह को बरकत का महीना भी कहते हैं।
रमजान इस्लामी कैलेंडर के अनुसार नौवां माह होता है। रमजान का चांद दिखते ही लोग इबादत में लग जाते हैं। महिसौड़ी मदरसा असरफीया के मौलाना फारूक असरफी कहते हैं कि रमजान में रोजा रख कर रात-दिन इबादत करने से बहुत सबाब मिलता है। इस इबादत से अल्लाह खुश होता है। सर्व प्रथम 610 ई़. से रमजान का रोजा मुसलमानों पर फर्ज हुआ।
हदीस में आया है कि रमजान का महीना आते ही बानी-ए-इसलाम मो. साहब मक्के के प्रसिद्घ पहाड़ गाड़े हेरा की एक खोह में जाकर दिन भर भूखे-प्यासे रोजा रखा कर रब की खूब इबादत किया करते थे। इनकी इबादत अल्लाह को इतनी पसंद आई कि उसी समय से मुसलमानों पर रमजान का रोजा फर्ज कर दिया गया। इस माह की 27वीं रात यानी शब-ए-कद्र की रात को कुरान शरीफ धरती पर उतारी गयी तथा इसी रात में ही सैयदना हजरते आदम के जन्म संबंधी बुनियाद भी रखी गयी। रमजान का रोजा हर मर्द-औरत व बालिग पर फर्ज है।
रोजा कैसे रखे :
सुबह नमाजे फर्ज का समय शुरू होते ही संध्या कालीन सूर्य डूबने तक खाने, पीने, बीड़ी सिगरेट, तंबाकू, धूम्रपान सेवन करने के अलावा हर बुरे काम से परहेज करने का नाम रोजा है। इस संबंध में कहते हैं कि रोजे की हालत में झूठ बोलना, किसी पर अत्याचार करना, चुगलखोरी, गाली-गलौज, मारपीट, शराब पीना, जुआ व तासबाजी करना, जानबूझ कर खाना-पीना, धुम्रपान का सेवन करना, गंदी चलचित्र को देखना, बुरे कामों में शामिल होने से रोजा बरबाद हो जाता है।
इनसे बचने का हुक्म हमें अल्लाह के रसूल ने दिया है। रोजा रख कर प्रतिदिन रोजेदार को ससमय नमाज पढ़ना एवं कुरानशरीफ की तिलावत करना इबादत है। साथ ही इफ्तार के वक्त एक साथ रोजा करना चाहिए। गरीब नि:सहाय यतीमों को हर संभव मदद करना चाहिए। रात में नमाजे एशा के फर्ज के बाद एक साथ 20 रकत तरावीह पढ़ना सुन्नत है। इस माह की फर्ज नमाज का सवाब 70 फर्ज नमाज के बराबर सवाब मिलता है।
रोजा नहीं रखनेवाले के लिए हुक्म :
जो व्यक्ति इस महीने में जानबुझ कर रोजा नहीं रखता तथा इसका एहतेराम नहीं करता है, अल्लाह और उसके रसूल उनसे सख्त नाराज होते हैं। नबी ने फरमाया कि रमजान जैसे पवित्र महीने का एहतेराम न करने वाला व्यक्ति परेशान व बरबाद हो जायेगा। बुढ़ापा, लाचारी, बीमारी के कारण रोजा नहीं रखने पर एक रोजे के लिए दिन भर के खाने का अनाज गरीबों में बांटे। जान-बुझ कर रोजा नहीं रखने वालों को लगातार 60 दिनों तक एक रोजे के बदले गरीबों को भोजन कराएं या लगातार खुद 60 दिनों तक बतौर जुर्माना रोजा रखें, यह अल्लाह का हुक्म है। रोजेदारों को ईद के चांद को दिखने से पहले सदका-ए-फितर अदा करना जरूरी है। अन्यथा रोजा जमीनों आसमान के बीच लटका रहता है।
तीन हिस्सों में बांटा गया है माह-ए-रमजान को:
माह-ए-रमजान के पहले दिन से ही पहला अशरा शुरू हो जाएगा। मौलाना फारूक असरफी बताते हैं कि इस्लाम के मुताबिक पूरे रमजान को तीन हिस्सों में बांटा गया है, जो पहला, दूसरा और तीसरा अशरा कहलाता है। एक से दस रमजान पहला अशरा होता है, जिसे रहमत का अशरा कहते हैं। दूसरा अशरा ग्यारह से बीस रमजान मगफिरत यानी गुनाहों की माफी का होता है और तीसरा अशरा इक्कीस से तीस रमजान जहन्नम की आग से खुद को बचाने के लिए होता है। रमजान के शुरुआती 10 दिनों में रोजा-नमाज करने वालों पर अल्लाह की रहमत होती है।
